नमस्कार दोस्तों, मैं हूँ प्रखर। आज बात करेंगे कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को अब चुप क्यों हो जाना चाहिए, यानी Why Rahul Gandhi Needs to Shut Up.
30 अप्रैल 2025 को मोदी सरकार ने ऐलान किया कि आने वाली जनगणना जाति आधारित होगी। 4 जून की प्रेस रिलीज़ और फिर 15 जून को गृहमंत्री अमित शाह की समीक्षा बैठक के बाद जारी आधिकारिक बयान में भी यही बात दोहराई गई।
लेकिन 16 जून को जारी अधिसूचना में “जातिगत जनगणना” शब्द का सीधा उल्लेख नहीं था। बस इसी बात को पकड़कर राहुल गांधी और कांग्रेस ने शोर मचाना शुरू कर दिया और जनता को गुमराह करने के लिए फेक न्यूज़ का सहारा लिया।
तो इस वीडियो को अंत तक ज़रूर देखिए, क्योंकि इसमें हम बताएंगे कि कांग्रेस कैसे जातिगत जनगणना के नाम पर जनता को गुमराह करने की रणनीति बना रही है।
सबसे पहले बात करते हैं खुद राहुल गांधी की
दत्तात्रेय गोत्र के कौल ब्राह्मण, जो खुद अपनी जाति नहीं बताते, लेकिन पूरे देश की जातियाँ गिनवाने पर आमादा हैं। कूली, किसान, पिज़्ज़ा डिलीवरी बॉय, ड्राइवर, मैकेनिक, जाने कितने किरदार निभा चुके राहुल गांधी अब OBC का मसीहा बनने का अभिनय कर रहे हैं।
हकीकत यह है कि राहुल गांधी जातिगत राजनीति को हवा देकर कांग्रेस को फिर से जीवित करना चाहते थे। 2024 के चुनाव में कांग्रेस को जब 99 सीटें मिलीं, तो उन्हें लगने लगा कि उनकी यह विभाजनकारी राजनीति शायद पार्टी में नई जान फूंक सकती है।
उन्हें इस सफलता का श्रेय OBC वोटबैंक के ध्रुवीकरण को मिला। लेकिन अगर राहुल गांधी को सच में जातिगत जनगणना की चिंता होती, तो कांग्रेस शासित राज्यों में यह काम कब का हो चुका होता।
लेकिन सच्चाई क्या है?
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने 2015 में खुद कराई गई कास्ट सर्वे रिपोर्ट को कांग्रेस हाईकमान के निर्देश पर यह कहकर रद्द कर दिया कि “डेटा पुराना हो गया है”। और यह सब जनता के 165 करोड़ रुपये बर्बाद करने के बाद हुआ।
अब कांग्रेस उसी कर्नाटक में नया कास्ट सर्वे कराने जा रही है, जिसका रिपोर्ट शायद अगली सरकार के कार्यकाल तक आएगा।
यही है कांग्रेस की रणनीति, जाति को मुद्दा बनाए रखो, लेकिन कभी समाधान मत दो।
क्या राहुल गांधी को इतिहास की जानकारी नहीं?
भारत में आखिरी बार जातिगत जनगणना 1931 में हुई थी। इसके बाद 1951 में उनके दादा पंडित नेहरू ने इसे यह कहते हुए बंद करवा दिया कि इससे जाति आधारित नफरत फैलेगी।
1980 में मंडल कमीशन आया, मगर उनकी दादी इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी ने इसे लागू नहीं किया। नतीजा, OBC को उनका अधिकार मिलने में 10 साल से ज्यादा का वक्त लग गया।
अब जब मोदी सरकार ने खुद ऐलान कर दिया है कि 2027 में जातिगत जनगणना करवाई जाएगी, तो राहुल गांधी और कांग्रेस की ज़मीन खिसक गई है।
कांग्रेस का पाखंड और फर्जी विमर्श
राहुल गांधी अब दावा कर रहे हैं कि यह तो सिर्फ जनगणना है, कास्ट सेंसस नहीं। जबकि गृह मंत्रालय ने बार-बार स्पष्ट किया है कि 2027 की जनगणना में जाति की गणना शामिल होगी।
जनगणना की अधिसूचना में हर शब्द “शब्दशः” नहीं लिखा जाता। जैसे 2011 की जनगणना के नोटिफिकेशन में “दो चरणों” का ज़िक्र नहीं था, फिर भी ऐसा हुआ। उसी तरह अब भी होगा।
और हाँ, साल 2010 में जब UPA सरकार ने SECC यानी Social, Economic and Caste Census कराया था, तो उसके आँकड़े कभी सार्वजनिक नहीं किए गए।
बहाना बना दिया गया “तकनीकी समस्याओं” का। लेकिन असली वजह थी, राजनीतिक जोखिम का डर।
अब वही कांग्रेस सत्ता से बाहर होकर उन आँकड़ों को जारी करने की मांग करने का ढोंग कर रही है, जिन्हें उसने खुद देश से छिपाया था।
थोड़ा तथ्य भी जान लीजिए
2010 में जब कांग्रेस सत्ता में थी, तब बीजेपी विपक्ष में रहते हुए कास्ट सेंसस का समर्थन कर रही थी। गोपीनाथ मुंडे ने संसद में कहा था, “अगर OBC की गिनती नहीं हुई, तो सामाजिक न्याय में 10 साल और लग जाएंगे।”
राहुल गांधी बार-बार कहते हैं कि कांग्रेस शासित राज्य जातिगत जनगणना कराएंगे। लेकिन सेंसस सिर्फ केंद्र सरकार करा सकती है, और उसे करता है Registrar General गृह मंत्रालय के अधीन। राज्य सरकारें केवल कास्ट सर्वे करा सकती हैं, जनगणना नहीं।
राहुल गांधी को अब समझ लेना चाहिए कि उनकी नफरत, भ्रम और फेक न्यूज़ की राजनीति बेनकाब हो चुकी है।
2027 में जातिगत जनगणना होगी, और वह भी मोदी सरकार द्वारा, सुनियोजित, पारदर्शी और स्पष्ट तरीके से। अब राहुल गांधी को चुप हो जाना चाहिए। क्योंकि जब भी वो मुँह खोलते हैं, या तो नफ़रत फैलती है, या फिर देश भ्रमित होता है। अगर आप मेरी बातों से सहमत हैं, तो इस वीडियो को लाइक करें, शेयर करें और OpIndia को सब्सक्राइब करना न भूलें।