अपने कुकर्मों के लिए TMC के MP Saket Gokhale ने रात के अंधेरे में क्यों कहा चुपके से ‘सॉरी’, सावरकर को गाली देने वाला साकेत गोखले खुद बना ‘माफ़ीबाज’
वीर सावरकर का मजाक बनाने वाले, TMC सांसद साकेत गोखले ने अपनी बदतमीजी के लिए सार्वजनिक तौर पर माफी मांगी है। यह वही सांसद गोखले है जिसने कितनी बार वीर सावरकर के माफीनामे को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है, और उनका अपमान किया है। आज दिल्ली उच्च न्यायालय ने साकेत गोखले को पूर्व राजदूत लक्ष्मी पुरी के अपमान करने के आरोप में सार्वजनिक तौर पर लक्ष्मी पुरी से माफी मांगने को कहा,और साकेत गोखले ने ऑनलाइन और ऑफलाइन, दोनों तरह से ही उनके चरण पकड़ लिए।
वो भी रात के अंधेरे में ३ बजे, चुपके से, ये सोचकर कि किसीको क्या ही पता चलेगा। असल में साकेत गोखले ने 2021 में राजदूत पुरी पर विदेश में जमीन खरीदने का आरोप लगाया था।
अपने ट्वीट में साकेत गोखले अपने माफी नामे में ईमानदारी से लिखते है कि, ‘मैं 13 और 23 जून 2021 को राजदूत लक्ष्मी मुर्देश्वर पुरी के खिलाफ कई ट्वीट करने के लिए बिना शर्त माफी मांगता हूं, जिसमें राजदूत पुरी की ओर से विदेश में संपत्ति खरीदने के संबंध में गलत और असत्यापित आरोप शामिल थे, जिसका मुझे ईमानदारी से खेद है।’
ममता बनर्जी की TMC के बड़बोले सांसद साकेत गोखले ने वीर सावरकर के बारे में सोशल मीडिया में ना जाने क्या क्या जहर फैलाया, लेकिन वीर सावरकर के दृढ़ संकल्प को यह व्यक्ति कभी समझ ही नहीं पाया। साकेत गोखले ने अपने एक ट्वीट में यह कहा था कि सरकार को माफी शब्द के जगह सावरकर शब्द का उपयोग करना चाहिए। तो क्या अब सरकार को दोगला शब्द की जगह ‘साकेत गोखले’ शब्द का उपयोग करना चाहिए?
साकेत गोखले, क्या तुमने कभी सावरकर के बारे में पढ़ा है? कभी तुमने यह जानने की कोशिश की कि वीर सावरकर Port Blair की जेल में कैसे रहते थे?
सेलुलर जेल में, वीर सावरकर को अमानवीय यातना और अमानवीय व्यवहार का सामना करना पड़ा। ऐसा अमानवीय व्यवहार जिसके चलते कई राजनीतिक कैदियों ने आत्महत्या कर ली थी और कई अन्य कैदी तो पागल भी हो गए थे। ऐसी स्थिति में सावरकर ने असाधारण लचीलापन दिखाया। जेल से बाहर निकल कर समाज के काम आना उन्होंने अधिक महत्वपूर्ण समझा, और अंग्रेजों को लिखे गए अपने रणनीतिक पत्रों में सावरकर ने स्वयं के साथ साथ अन्य कैदियों के रिहाई की भी बात रखी।
डियर मिस्टर साकेत गोखले, कभी तुमने ‘बहादुर’ पूर्व पीएम जवाहरलाल नेहरू की रिहाई बॉन्ड के बारे में जानने की कोशिश की है? नए कपड़ों या नहाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण जवाहरलाल नेहरू के पिता ने वायसरॉय से संपर्क किया था। उसके बाद एक रिहाई बॉन्ड पर हस्ताक्षर करते हुए नेहरू तो बाहर आ गए। लेकिन अपने साथियों को जेल में ही सड़ता हुआ छोड़ दिया। इस घटना पर महसूस होती शर्म के बारे में खुद नेहरू ने अपनी किताब में लिखा है। नेहरू ने स्वीकार किया कि वे अपने सहयोगी के प्रति वफादार नहीं रहे।
सावरकर के उस पत्र को तो कांग्रेसी तंत्र ने प्रॉपगैंडा में कन्वर्ट कर दिया है, लेकिन माफ़ी वाले लेटर तो नेहरू ने भी लिखे थे, तो उसका क्या?
आज जब एक पूर्व राजदूत का अपमान करने के आरोप में कोर्ट के आदेश पर तुम उनसे सार्वजनिक माफी मांग रहे हो, तो क्या कहना चाहोगे? कोई डिबेट नहीं करना है? राज्य सभा में हल्ला नहीं करना है?
वीर सावरकर का बस तुम अपमान कर सकते हो, उनकी वीर गाथा, उनके परिश्रम, उनके त्याग को खत्म नहीं कर सकते।